कोई भी राजनीतिक दल तब ही मजबूत होता है,जब उसका संगठन बूथ लेवल तक मजबूत होता है। जब राजनीतिक दल बूथ लेवल पर वाकई मजबूत होता है तो ही राजनीतिक दल चुनाव जीतता भी है। यानी किसी राजनीतिक दल के चुनाव जीतने या हारने का एक कारण यह भी होता है कि उसका संगठन बूथ लेवल तक मजबूत है या नही है।जब कोई राजनीतिक चुनाव हार जाता है तो कहा जाता है कि उसका संगठन बूथ लेवल तक मजबूत नहीं था, इसी तरह कोई राजनीतिक दल चुनाव जीत जाता है तो कहा जाता है उसकी जीत का एक प्रमुख कारण संगठन बूथ लेवल तक मजबूत था।पिछला चुनाव छत्तीसगढ़ में भाजपा जीती है तो माना जाता है कि उसका संगठन बूथ लेवल तक मजबूत था, इसलिए व चुनाव जीती और कांग्रेस चुनाव हारी इसीलिए कि उसका संगठन बूथ लेवल तक मजबूत नहीं था।
राजनीतिक दल की मजबूती के लिए सबसे ज्यादा जरूरी होता है कि बूथ लेवल तक संगठन को कैसे मजबूत किया जाए।कांग्रेस चुनाव के बाद चुनाव हार रही है, वह छत्तीसगढ़ में भी पिछला विधानसभा चुनाव हार गई तो अब वह चुनाव में हार का कारण कमजोर संगठन को मानते हुए अब संगठन को मजबूत करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस प्रक्रिया का नाम उसने रखा है कि संगठन सृजन अभियान। इसके अभियान के लिए जिले में दिल्ली से पर्यवेक्षक नियुक्त किए गए हैं।हर जिले में यह पर्यवेक्षक जा रहे हैं और जिला अध्यक्ष के लिए कांग्रेस के जिले के वरिष्ट नेताओं से चर्चा करेंगे, वह जिला अध्यक्ष व पीसीसी के आव्जर्वर से चर्चा करेंगे, ब्लाग के पदाधिकारियों से चर्चा करेंगे,समाज से जुड़े प्रमुख लोगों से बात करेंगे, आखिरी दिन जिला अध्यक्ष के दावेदारों से चर्चा करेंगे। इसके बाद दावेदारों का एक पैनल बनाया जाएगा और एआईसीसी उनमें से किसी एक को जिला अध्यक्ष बनाएगी। यानी इस बार जिला अध्यक्ष राज्य अध्यश्र और वरिष्ठ नेताओं की पसंद की जगह दिल्ली की पसंद से बनाए जाएंगे।
कांग्रेस में संगठन में नियुक्ति आजादी के बाद से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व राज्य के वरिष्ठ नेताओं के अनुसार होती रही है। तब भी कांग्रेस का संगठन मजबूत हुआ करता था और चुनाव जीतता भी था। पहली बार जिला अध्यक्षो की नियुक्ति दिल्लीसे करके संगठन को मजबूत करने नया प्रयोग किया जा रहा है। सवाल उठता है कि दिल्ली को ऐसा करने की जरूरत क्यों महसूस हुई। क्या आलाकमान को लगा कि राज्य के नेताओं की गुटबाजी के कारण कांग्रेस संगठन के रूप में कमजोर हुई और इसी कारण चुनाव ज्यादा हार रही है। क्या आलाकमान को यह लगा कि नेताओं की गुटबाजी के कारण कांग्रेस पदाधिकारियों की आस्था अपने जिला,प्रदेश के नेता के प्रति है, कांग्रेस और दिल्ली के नेताओं के प्रति नहीं है। इससे कांग्रेस में जिले व प्रदेश का नेता जिला अध्यक्ष के लिए सबकुछ होता है। उसके लिए पार्टी व आलाकमान कोई मायने नहीं रखता है, पार्टी की विचारधारा कोई मायने नहीं रखती है। नेता दूसरी पार्टी में चला जाता है उसके समर्थक भी उसके साथ चले जाते हैं।
क्या अब आलाकमान चाहता है कि पार्टी को जिला अध्यक्ष उसके प्रति आस्था रखे, जिले के बारे में जो बताना है वह खुद बताए। यह तो एक तरह से जिलों व प्रदेश नेताओं के प्रति आलाकमान ने अविश्वास व्यक्त कर दिया है कि तुम लोग कांग्रेस को संगठन के तौर पर मजबूत नहीं कर पा रहे हो, संगठन मे सबकुछ तुम्हारी मर्जी से होता है फिर भी कांग्रेस संगठन के तौर पर कमजोर है एक चुनाव जीतने के बाद दूसरा चुनाव जीत नहीं पाती है। क्या दिल्ली की मर्जी से जो जिला अध्यक्ष बनाए जाएंगे, उससे कांग्रेस का संगठन जिला स्तर पर मजबूत हो सकेगा. फिलहाल तो यही सवाल कांग्रेस व आम लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है।रायपुर जिले के अध्यक्ष के लिए पर्यवेक्षक प्रफुल्ल गुडाथे रायपुर पहुंच गए हैं।वह हर स्तर पर चर्चा के बाद जिला अध्यक्ष के दावेदारों का पैनल बनाकर दिल्ली ले जाएंगे।
रायपुर शहर व ग्रामीण से जिला अध्यक्ष के लिए कई लोगों के नाम सामने आए हैं। इसमें ऐसे लोग भी है जो पहले कई पदों पर रह चुके हैं तथा कई लोग अभी भी किसी पद पर है लेकिन वह जिला अध्यक्ष बनना चाहते हैं क्योंकि इस बार जिला अध्यक्ष पहले के जिलाअध्यक्षों से ज्यादा अधिकार वाला होगा, उसकी पहुच दिल्ली व राहुल गांधी तक होगी। शहर जिला अध्यक्ष के दावेदारों मेें विनाद तिवारी,सुबोध हरितवाल, श्रीकुमार मेनन, देवेंद्र यादव, शिवसिह ठाकुर, दीपक मिश्रा,सुनील कुकरेजा, पंकज मिश्रा,घनश्याम राजू तिवारी,सुनील कुमार बाजारी,दिलीप सिंह चौहान के नाम की चर्चा है तो ग्रामीण जिला अध्यक्ष के लिए उधोराम वर्मा,प्रवीण साहू, राजेंद्र पप्पू बंजारे, भावेश बघेल,खिलेश्वर देवांगन के ना्म की चर्चा है।
हर क्षेत्र में बेहतर काम करने वालों को जनता पसंद करती है, उन पर गर्व करती है,उन पर भरोसा करती है, उनको बार बार सेवा व काम करने का मौका देती है।
राजनीतिक दलों की नींव होते हैं कार्यकर्ता। नींव मजबूत होती है तो राजनीतिक दल भी मजबूत होते हैं और चुनाव जीतने मेें आसानी होती है।
राजनीति में आलाकमान जिसे बड़ा नेता मानता है, उसे जरूरत पड़ने पर बड़ी जिम्मेदारी भीे देता है।
किसी भी राजनीतिक दल का कार्यकर्ता हो या नेता हो या पूर्व मंत्री हो जब अपनी सरकार होती है तो सबको अपनी सरकार से इतनी तो अपेक्षा तो होती ही है कि वह ...
हर राजनीतिक दल में बड़े नेताओं के गुट होते हैं। हर बड़े राजनीतिक दल में गुटबाजी होती है।