किसी भी राजनीतिक दल का कार्यकर्ता हो या नेता हो या पूर्व मंत्री हो जब अपनी सरकार होती है तो सबको अपनी सरकार से इतनी तो अपेक्षा तो होती ही है कि वह कोई काम कहेगा तो उसका काम हो जाएगा। वह कोई बात कहेगा तो मानी जाएगी। वह किसी अधिकारी को हटाने को कहेगा तो उसे हटाया जाएगा, वह किसी की कहीं नियुक्ति कराना चाहेगा तो करा सकेगा। जब अपेक्षा होती है और काम नहीं होता है,उसकी बात सुनी नहीं जाती हो तो चाहे वह कार्यकर्ता हो,नेता हो या पूर्व मंत्री हो उसको गुस्सा तो आता है। गुस्सा आने पर वह अपने सरकार अपनी बात मनवाने के लिए कई तरह के प्रयास करता है।
ननकीराम कंवर भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं, उस पर वह पूर्व गृहमंत्री रहे हैं, उस पर वह अपने इलाके के आदिवासी नेता हैं। यानी एक तो करेला उस पर नीम चढ़ा।राज्य में आदिवासी मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय है और कंवर की शिकायत है कि उनके शासन में एक वरिष्ठ आदिवासी नेता की छोटी सी मांग पूरी नहीं की जा रही है।उनका आरोप है कि कोरबा कलेक्टर भ्रष्ट है,उसे हटाया जाना चाहिए। इस मामले में वह सरकार से कई बार मांग कर चुके हैं, उनकी मांग को गंभीरता से नहीं लेने पर वह नाराज हैं कि अपनी पार्टी की सरकार होने पर भी वरिष्ठ भाजपा नेता की मांग पूरी नहीं की जा रही है।
उन्होंने चार अक्टूबर तक कोरबा कलेक्टर को न हटाने पर रायपुर में सीएम हाउस के सामने धरना देने की घोषणा की थी। इसकी सूचना रायपुर जिला प्रशासन को दे दी थी, कोरबा कलेक्टर को चार अक्टूबर तक नहीं हटाने पर ननकीराम ने अपनी घोषणा के अनुरूप से चार अक्टूबर को सीएम हाउस के सामने धरना देते इससे पहले उनको कुछ समय के लिए हाउस अरेस्ट कर लिया गया ताकि वह सीएम हाउस के सामने धरना न सकें लेकिन वह धरना देने पर अड़े रहे और वह जब धरना देने जा रहे थे तो एम्स के पास पुलिस ने उन्हें रोक लिया।इसके बाद प्रदेश भाजपा अध्यक्ष किरण सिंहदेव से उनकी बात हुई, भाजपा नेताओं के साथ भाजपा कार्यालय में बैठक हुई और सीएम साय ने उनसे फोन पर बात कर आश्वस्त किया कि उनकी मांगों का निराकरण किया जाएगा।इसके बाद ननकीराम कंवर कोरबा चले गए।
अपनी ही पार्टी का बड़ा नेता जब कलेक्टर को हटाने की मांग करता है तो सीएम के लिए बड़ी मुश्किल हो जाती है क्योंकि नहीं हटाने पर पार्टी के भीतर संदेश जाता है कि सीएम अपनी पार्टी के बड़े नेताओं की बात नहीं मान रहे हैं।अगर हटाते हैं तो इससे पार्टी के भीतर तो अच्छा संदेश जाता है और ऐसी मांग करने वालों की संख्या बढ़ जाती है कि पार्टी के लोगों की बात सुनी जा रही है लेकिन इससे जिला प्रशासन के अधिकारियों में गलत मैसेज जाता है कि उनकी कोई भी शिकायत कर दे तो उनको हटा दिया जाता है। ऐसा हर पार्टी में होता है लेकिन यह सब चुपचाप हो तो अच्छा रहता है, पार्टी के लोगों का काम भी हो जाता है और किसी को पता भी नहीं चलता है।
जब पार्टी के वरिष्ठ नेता की बात सरकार नहीं सुनती है तो इसका फायदा विपक्ष भी उठाता है और सरकार को सवालों के कठघरे में खड़ा करता है कि देखो आदिवासी सीएम होने के बाद आदिवासी नेता की बात नहीं सुनी जा रही है। भूपेश बघेल तो मौके की ताक मे रहते हैं,उन्होंने ननकीराम कंवर को घर में नजरबंद किए जाने पर कहा है कि देश के गृहमंत्री राज्य के दौरे पर और प्रदेश के पूर्व गृहमंत्री को घर में नजरबंद कर दिया गया।यह तो आदिवासी नेता का अपमान है।प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने कहा है कि यह तो सरकार की तानाशाही है।भाजपा सरकार है और भाजपा नेताओं की सुनवाई नहीं हो रही है।राजनीति में सब ताक में रहते हैं, मौका मिलता है तो चौका मार देते हैं।
कोई भी राजनीतिक दल तब ही मजबूत होता है,जब उसका संगठन बूथ लेवल तक मजबूत होता है। जब राजनीतिक दल बूथ लेवल पर वाकई मजबूत होता है तो ही राजनीतिक दल चुन...
हर क्षेत्र में बेहतर काम करने वालों को जनता पसंद करती है, उन पर गर्व करती है,उन पर भरोसा करती है, उनको बार बार सेवा व काम करने का मौका देती है।
राजनीतिक दलों की नींव होते हैं कार्यकर्ता। नींव मजबूत होती है तो राजनीतिक दल भी मजबूत होते हैं और चुनाव जीतने मेें आसानी होती है।
राजनीति में आलाकमान जिसे बड़ा नेता मानता है, उसे जरूरत पड़ने पर बड़ी जिम्मेदारी भीे देता है।
हर राजनीतिक दल में बड़े नेताओं के गुट होते हैं। हर बड़े राजनीतिक दल में गुटबाजी होती है।