गुटबाजी तो है पर कांग्रेस जैसी नहीं है

Posted On:- 2025-10-04




सुनील दास

हर राजनीतिक दल में बड़े नेताओं के गुट होते हैं। हर बड़े राजनीतिक दल में गुटबाजी होती है। कोई राजनीतिक दल इसे पार्टी की विशेषता मानता है, कोई कहता है कि इससे पता चलता है कि हमारी पार्टी में लोकतंत्र है।सबको अपनी बात कहने की छूट है तो कोई राजनीतिक दल इसे पार्टी की एकजुटता के लिए ठीक नहीं मानता है।एक राजनीतिक दल के अध्यक्ष को अपनी पार्टी मेें कोई गुटबाजी नहीं दिखती है लेकिन दूसरे दल में उसको गुटबाजी दिखाई देती है, उसे लगता है कि गुटबाजी समस्या है और दूसरा राजनीतिक दल इससे परेशान है, उसके बड़े नेता इससे परेशान हैं। 

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज खुद कांग्रेस में गुटबाजी के शिकार हैं। कांग्रेस नेता उनको अध्यक्ष पद से हटाने के लिए आए दिन प्रयास करते रहते हैं। कांग्रेस में जितने नेता हैं उतने गुट हैं,हर गुट की कोशिश रहती है कि सरकार है तो मंत्री पद उनके समर्थक को मिले, सरकार नहीं रहती है तो संगठन में पद उसके गुट के लोगों को मिलना चाहिए। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सत्ता में नहीं है तो उसके अध्यक्ष को लेकर जोर आजमाइश होती रहती है। अध्यक्ष दीपक बैज हैं,आदिवासी हैं, कई लोग चुनाव हारने के बाद बैज को हटाने दिल्ली तक दौड़ लगा चुके हैं लेकिन आदिवासी होने के कारण उनको हटाया नहीं जा रहा है क्योंकि भाजपा ने यहां आदिवासी को सीएम बना रखा है। अगर कांग्रेस बैज को हटाती है तो कांग्रेस पर आरोप लगेगा कि उसने आदिवासियों का अपमान किया है।

 भूपेश बघेल के समय से कांग्रेस अध्यक्ष चाहे मरकाम हो या उनके बाद बैज हो बनाया इसलिए गया कि आदिवासियों का वोट मिलेगा और कांग्रेस चुनाव जीतेगी लेकिन कांग्रेस का यह फार्मूला काम नहीं आया।भूपेश बघेल का कद चुनाव हारने के बाद कम हुआ है, इसलिए उनके चाहने पर दीपक बैज को हटाया नहीं जा रहा है। भूपेश बघेल चाहते हैं कि उनकी जगह किसी दूसरे आदिवासी को कांग्रेस अध्यक्ष बना दिया जाए जैसे मरकाम को हटाकर बैज को बनाया गया था।लेकिन बैज ने भूपेश के दांव को यह कहकर फेल कर दिया कि चुनाव में हार के लिए वह अकेले दोषी नहीं है। चुनाव में टिकट तो सभी बड़े नेताओं के कहने पर बांटा गया था इसलिए चुनाव में हारके लिए सभी दोषी हैं।

वैसे भी कांग्रेस में चुनाव हारने पर अध्यक्ष स्वतः इस्तीफा देते नहीं है, इसलिए बैज ने भी नहीं दिया। वह अध्यक्ष बने हुए हैै, वह अध्यक्ष होते हुए भी कांग्रेस की गुटबाजी तो खत्म नहीं कर पा रहे हैं।वह भाजपा में गुटबाजी की बात कर रहे हैं, कह रहे हैं कि मंत्रिमंंडल विस्तार के बाद भाजपा मेें गुटबाजी चरम पर है।डैमेज कंट्रोल के लिए अमित शाह रायपुर में रुकेंगे। इस बात में दो मत नहीं है कि भाजपा एक राजनीतिक दल है, उसमें भी नेताओं के गुट हैं, गुटबाजी है, अपने लोगों को टिकट या संगठन में पद दिलाने का प्रयास होता है। लेकिन भाजपा की गुटबाजी पार्टी के लिए कांग्रेस की तरह समस्या नहीं रही है। गुटबाजी से भाजपा को कांग्रेस की तरह नुकसान नहीं होता है। कांग्रेस नेता कांग्रेस प्रत्याशी को हराने के लिए जिस तरह प्रयास करते हैं। भाजपा नेता कम के कम से वैसा प्रयास तो जाहिर तौर पर नहीं करते हैं।

कांग्रेस की गुटबाजी के उदाहरण तो हर राज्य में सामने आते रहते हैं। हाल में कर्नाटक में डीके शिवकुमार के समर्थक ने शिवकुमार को सीएम बनाने का मांग कर दी थी। सब जानते हैं कि चुनाव के बाद से डीके व सिध्दारमैया के बीच सीएम पद को लेकर होड़ रही है, आलाकमान ने डीके को नहीं बनाया। ढाई साल बनाने का वादा करके भी नहीं बना रहा है।छत्तीसगढ़ में भी भूपेश बघेल व सिंहदेव के बीच ऐसा ही हुआ था,आलाकमान के कारण भूपेश बघेल पांच साल सीएम तो बने रहे लेकिन पांच साल बाद क्या हुआ। भूपेश के नेतृत्व में कांग्रेस चुनाव हार गई। जाहिर तौर पर तो छत्तीसगढ़ मे चुनावी हार के लिए भूपेश बघेल को दोषी माना जाता है लेकिन सोचा जाए तो इसके लिए आलाकमान भी दोषी रहा है क्योंकि भूपेश बघेल को बनाए रखने का काम तो उसी ने किया था। आलाकमान कर्नाटक में ऐसा ही कर रहा है। इसलिए कहा जा रहा है कि कर्नाटक में भी आलाकमान के कारण अगला चुनाव कांग्रेस हार जाए तो आश्चर्य की बात नहीं होगी। गुटबाजी के कारण कांग्रेस चुनाव हारती है और उसके आलाकमान व प्रदेश अध्यक्षों को अपनी पार्टी में गुटबाजी  समस्या नहीं लगती है। उसकी कोई चिंता नहीं होती है। भाजपा की गुटबाजी की ज्यादा चिंता होती है। इसे कहते हैं दिया तले अंधेरा।



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