नई दिल्ली(वीएनएस)।रेयर अर्थ मैग्नेट मुद्दे पर सरकार का निर्णय तकनीकी संप्रभुता की ओर निर्णायक कदम है। दुनिया की बैटरियों, इलेक्ट्रिक मोटर्स, मिसाइल गाइडेंस सिस्टम, रडार, विंड टर्बाइनों आदि लगभग हर उभरती तकनीक के बीच में Rare Earth Permanent Magnets धड़कते दिल की तरह काम करते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज कई अहम फैसले लिए। इनमें सबसे महत्वपूर्ण फैसला है 7,280 करोड़ रुपये की Rare Earth Permanent Magnets (REPM) Scheme को मंजूरी, जिसके तहत देश में पहली बार 6,000 MTPA क्षमता वाले एकीकृत रेयर अर्थ मैग्नेट उत्पादन संयंत्र स्थापित किए जाएंगे। इसके अलावा, महाराष्ट्र व गुजरात में दो रेलवे मल्टी-ट्रैकिंग परियोजनाओं (कुल 224 किमी) को स्वीकृति दी गयी है, जो माल व यात्री दोनों मोर्चों पर रणनीतिक कनेक्टिविटी को बढ़ाएंगी। साथ ही, पुणे मेट्रो फेज-2 की लाइन 4 और 4A (31.6 किमी, 9,857 करोड़ रुपये लागत) को हरी झंडी दी गयी है, जिससे तेजी से बढ़ते पुणे महानगर में टिकाऊ, हरित और बहु-माध्यमीय शहरी परिवहन का नया ढांचा तैयार होगा। इन निर्णयों का साझा महत्व यह है कि ये भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता, लॉजिस्टिक क्षमता, ऊर्जा परिवर्तन और भविष्य की अर्थव्यवस्था के बुनियादी अवसंरचना, चारों को समान रूप से मजबूत करते हैं।
देखा जाये तो केंद्रीय मंत्रिमंडल के आज के फैसले सिर्फ सामान्य प्रशासनिक स्वीकृतियाँ नहीं हैं, ये भारत की 21वीं सदी की रणनीतिक दिशा को परिभाषित करने वाले मील के पत्थर हैं। रेयर अर्थ मैग्नेट निर्माण, रेलवे नेटवर्क विस्तार और पुणे मेट्रो का विस्तार, ये तीनों निर्णय अपनी-अपनी जगह महत्वपूर्ण हैं, पर इनका संयुक्त संदेश है कि भारत अब सिर्फ उपभोक्ता अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि वैश्विक उत्पादन, प्रौद्योगिकी और लॉजिस्टिक्स का एक उदित होता महाशक्ति बनने की राह पर है।
रेयर अर्थ मैग्नेट मुद्दे पर सरकार का निर्णय तकनीकी संप्रभुता की ओर निर्णायक कदम है। दुनिया की बैटरियों, इलेक्ट्रिक मोटर्स, मिसाइल गाइडेंस सिस्टम, रडार, विंड टर्बाइनों आदि लगभग हर उभरती तकनीक के बीच में Rare Earth Permanent Magnets धड़कते दिल की तरह काम करते हैं। दशकों से भारत इस क्षेत्र में लगभग पूर्ण आयात-निर्भरता की शर्मनाक स्थिति में रहा है, जबकि चीन इस बाजार का 90% से अधिक हिस्सा नियंत्रित करता है। ऐसे में 7,280 करोड़ रुपये की REPM योजना का संदेश स्पष्ट है कि भारत अब तकनीकी सप्लाई-चेन का मोहरा नहीं, खिलाड़ी बनना चाहता है।
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