बस्तर में नक्सली खौफ में है, यह बात राज्य के लोगों को अच्छी लगती है। पहली बार ऐसा हो रहा है, ऐसी खबर आ रही है कि बस्तर में नक्सली कभी भी,कहीं भी, मारे जाने से डरे हुए हैं।वह अपने लिए सुरक्षित ठिकाना तलाश रहे हैं लेकिन कहीं उनको सुरक्षित ठिकाना नहीं मिल रहा है।वह निरंतर जवानों की पहुंच में है,उनके निशाने पर हैं।यह राज्य के लोगों के साथ ही बस्तर के लोगों के लिए एकदम अलग तस्वीर है, नक्सली तो सबको डराने वाले थे, सबको मारने वाले थे, बस्तर में वही होता था जो वह चाहते थे।उनका आतंक इतना था कि उनके इलाकों में पुलिस व सुरक्षा बल के जवान जाते नहीं थे, उनके इलाके में पुलिस व जवानों के जाने का मतलब होता था मारा जाना। गांवों व सड़कों पर तख्ती लगी रहती थी, यहां से नक्सलियों का इलाका शुरू होता है। यह एक तरह से चेतावनी होती थी कि आप ऐसे इलाके में हैं जहां वही होता है जो नक्सली चाहते हैं।
ज्यादा दिन नहीं हुए हैं पांच साल पहले तक नक्सली डराने वाले हुआ करते थे, उनको मरने का कोई डर नहीं होता था, वह निश्चिंत रहते थे कि उनको कोई मार नहीं सकता। उनको कोई किसी तरह से कमजोर नहीं कर सकता।साय सरकार के आए एक साल हुआ है और इस एक साल में बस्तर की पूरी तस्वीर बदल गई है। आज जवान आए दिन आपरेशन चला रहे हैं, नक्सलियों का ढेर कर रहे हैं। जितने नक्सली मारे जा रहे हैं, उससे ज्यादा मारे जाने के डर से सरेंडर कर रहे हैं।नक्सली संगठन के नेता नक्सलियों के मन से मारे जाने का डर खत्म नहीं कर पा रहे हैं। वह उनको आश्वस्त नहीं कर पा रहे हैं कि तुमको कोई मार नहीं सकता।यही वजह है कि वह अपने संगठन के लोगों को मारे जाने के बचाने के लिए एक के बाद एक शांति वार्ता का प्रस्ताव भेज रहे हैं।
सरकार ने तो साफ कर दिया है कि उसके दरवाजे शांति वार्ता के लिए खुले हुए हैं। हां इसके लिए वह कोई शर्त नहीं मानेगी।हाल ही में नक्सलियों के संगठन की तरफ से फिर एक शांति वार्ता का प्रस्ताव भेजा गया है।भारत की कम्यूनिस्ट पार्टी (माओवादी)के उत्तर पश्चिम सब जोनल ब्यूरो रूपेश के नाम से जारी पर्चे में कहा गया है कि दोनों पक्षों को स्थायी समाधान की ओर बढ़ते हुए कम से कम एक माह के लिए युध्द विराम करना चाहिए।शांति वार्ता का पूरा प्रयास आपरेशन कगार के नाम पर हो रहे हत्याकांड को तत्काल रोकने के लिए है।हम शांति वार्ता की जो पेशकश कर रहे हैं,उसके पीछे कोई छिपी रणनीति नहीं है।इस समस्या का हल शांति वार्ता से होना चाहिए और लगातार हो रही हत्याओं पर रोक लगनी चाहिए। इस मामले में अमित शाह व सीएम साय का रुख एकदम साफ है कि सरकार को बात करने से कोई एतराज नहीं है लेकिन इसके लिए कोई शर्त नहीं मानी चाहिए। नक्सली जिसको बात करने के लिए भेजना चाहते हैं, भेजें उनके साथ बात की जाएगी। नक्सलियों के सफाए का काम नहीं रुकेगा, यह तो नक्सलियों के सफाए तक चलेगा। जब तक सभी नक्सली सरेंडर नहीं कर देते या मार नहीं दिए जाते।
अमित शाह ने तो हमेशा कहा है कि नक्सली सरेंडर करें। यही एक रास्ता उनके लिए बचा है। जो सरेंडर करेगा उसके लिए सरकार हर तरह की व्यवस्था करेगी। सरकार की सरेंडर नीति सामने आने के बाद बस्तर में नक्सलियों का सरेंडर बढ़ा है। इससे बस्तर में नक्सलियों की संख्या कम होती जा रही है. नक्सली एक संगठन के तौर पर कमजोर होते जा रहे हैं।उनके सामने अब संगठन को चलाने नहीं उसके अस्तित्व को बचाने की समस्या पैदा हो गई है।नक्सली इस बात से सबसे ज्यादा परेशान हैं सुरक्षा बलों का खौफ बस्तर में इतना ज्यादा है नक्सली कुछ कर नहीं पा रहे हैं। वह कुछ करने लायक भी नहींं बचे हैं।यही वजह है कि वह सरकार को बार बार शांति वार्ता के लिए प्रस्ताव भेज रहे हैं।ताकि नक्सलियों के बस्तर में मारे जाने का सिलसिला बंद हो। साय सरकार जानती है कि अब सुरक्षा बल के जवान नक्सलियों पर भारी पड़ रहे हैं। यही मौका है नक्सलियों को सही रास्ते पर लाने का। यही मौका है नक्सलियों को सरेंडर करने के लिए प्रेरित करने का।
साय सरकार की बड़ी सफलता यह भी है कि नक्सलियों की उप राजधानी कहे जाने वाले बड़े सेट्टी गांव अब नक्सलवाद से मुक्त हो गया है।इस गांव को नक्सलमुक्त करने के लिए २० से ज्यादा एनकाउंटर किए गए।५० से ज्यादा लोगों को सरेंडर करवाया गया है। गांव को लोगों को इस बात का एहसास कराया गया कि नक्सलियों के रहते गांव का विकास नहीं हो सकता।इसके बाद पिछले सप्ताह गांव में बचे हुए ११ नक्सलियों ने भी सरेंडर कर दिया और गांव नक्सलियों से मुक्त हो गया है।माना जा रहा है कि जब नक्सलियों की उपराजधानी नक्सलमुक्त हो सकता है तो सारे गांव नक्सलमुक्त हो सकते हैं। गांव वालों को यह बात समझाने से समझ में आ रही है कि यदि गांव में नक्सली रहेंगे तो गांव का विकास नहीं हो सकता।
गांव नक्सलमुक्त होने पर गांव का विकास होगा। इसके लिए सरकार एक करोड़ हर गांव को देगी जो नक्सलमुक्त होगा। पहले गांव का विकास इसलिए नहीं हो पाता था क्योंकि नक्सली चाहते नहीं थे कि गांव का विकास हो। गांव वाले नक्सलियों से डरते भी थे इसलिए उनकी बात मानना उनकी मजबूरी थी आज नक्सलियों का खौफ कम हो रहा है तो गांव वाले भी चाहते हैं कि गांव में नक्सली हैं तो वह सरेंडर कर दे ताकि गांव का चौतरफा विकास हो सके।
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