नेशनल हेराल्ड:अदालती कार्यवाही का सम्मान करे कांग्रेस

Posted On:- 2025-04-18




- प्रमोद भार्गव

 देश के प्रथम व प्रतिष्ठित राजनीतिक गांधी परिवार की पुत्रवधू सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी समेत अन्य के विरुद्ध नेशनल हेराल्ड मामले में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पहला आरोप पत्र अदालत में दाखिल कर दिया है। इस मामले में कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा और पत्रकार सुमन दुबे भी आरोपी हैं। दुबे राजीव गांधी फाउंडेशन के ट्रस्टी भी हैं। यह आरोप पत्र 9 अप्रैल 1925 को विशेष जज विशाल गोगने की अदालत में पेश किया गया। अब इस पर अगली सुनवाई 25 अप्रैल को होगी। इसी दिन अदालत में केस डायरी भी प्रस्तुत करनी होगी। ईडी इसी प्रकरण में नेषनल हेराल्ड और एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड (एजेएल) से संबंधित 661 करोड़ रुपए की अचल संपत्तियों पर कब्जे की कार्यवाही षुरू कर दी है। ये संपत्तियां दिल्ली, मुंबई और लखनऊ में हैं। इस कार्यवाही के बाद देषभर में कांग्रेस ने सड़कों पर उतरकर राश्ट्रपति के नाम को केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कलेक्टर को ज्ञापन भी दिए। कहा गया कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता की आड़ में लोकतंत्र को कुचला जा रहा है। जबकि याद रहे यह मामला 2012 का है, उस समय यूपीए गठबंधन की केंद्र में सरकार थी और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। इस मामले की जांच 2015 से चल रही है। मालूम हो जनहित याचिकाएं दायर करने के बुद्धि विषेशज्ञ डाॅ सुब्रामण्यम स्वामी ने इस प्रकरण से जुड़ी याचिका 2013 में दाखिल की थी। इस समय भी केंद्र में यूपीए की सरकार थी। अतएव कांग्रेस को ईडी और अदालती कार्यवाही का सम्मान करने की जरूरत है। नेशनल हेराल्ड नाम के अंग्रेजी अखबार की स्थापना 1938 में पंडित नेहरू और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने की थी। इसका स्वामित्व एजेएल के पास था। इसी ने हिंदी में नवजीवन और उर्दू में कौमी आवाज अखबार निकाले थे।  

दरअसल दो हजार करोड़ रुपए के नेषनल हेराल्ड से संबंधित स्वामित्व व परिसंपत्तियों के हस्तांतरण से जुड़ा एक मामला निजी इस्तगासे के तहत निचली अदालत में विचाराधीन है। याचिकाकर्ता सुब्रामण्यम स्वामी ने अदालत में दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत करके यह दावा किया था कि अखबार का मालिकाना हक रखने वाली कंपनी ‘द एसोसिएट्स जर्नल्स लिमिटेड‘ के स्वामित्व और परिसंपत्तियों के हस्तांतरण में धोखाधड़ी की गई है। इससे लाभान्वित होने वाले सोनिया गांधी और राहुल गांधी हैं। न्यायालय ने पहली नजर में इस मामले को सुनने योग्य माना और प्रक्रिया आगे बढ़ा दी। तभी से कांग्रेस राजनीतिक प्रतिषोध के चलते इस मामले को झूठा ठहराने में लगी हुई है। साफ है, सोनिया, राहुल अपने को फंसता देख जानबूझकर मामले को सियासी साजिष करार देने में लगे हैं। यहां सोचने की जरूरत है कि वाकई न्यायपालिका राजनीति की कठपुतली है तो फिर 2013 में जब स्वामी ने अदालत में याचिका दाखिल की थी,तब अपनी राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल इस याचिका को खारिज कराने में क्यों नहीं किया ? याचिकाएं लगाने में सिद्धहस्त स्वामी ने कोई इकलौती यही याचिका दाखिल नहीं की,वे कई जनहित याचिकाएं लगाकर अपनी कानूनी लड़ाई को परिणाम तक पहुंचाने में सफल हुए हैं। टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले से जुड़ी याचिका भी स्वामी ने षीर्श न्यायालय में लगाई थी। 1.76 हजार करोड़ के इस घोटाले की याचिका लगाने के समय भी केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और सोनिया सर्वेसर्वा थीं। बावजूद पुख्ता दस्तावेजी साक्ष्य होने के कारण कांग्रेस के सहयोगी दल के नेताओं को जेल के सींखचों में जाना पड़ा था। यदि न्यायालय राजनेताओं के दिषा-निर्देषन के अनुसार वाकई चलती हैं,तो माननीय सोनिया जी संप्रग सरकार की भद् पिटवाने वाली इस कार्यवाही को क्यों नहीं रोक पाईं ? गोया पूरा देश जानता है कि अदालतों का राजनीतिक हस्तक्षेप से कोई वास्ता नहीं है। न्यायालयीन प्रक्रिया स्वतंत्र रूप से कानूनी दायरे में गतिशील रहते हुए अंतिम परिणाम तक पहुंचती है। इस लिहाज से कांग्रेस द्वारा केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को दोषी ठहराना उचित नहीं है।

                नेषनल हेराल्ड से जुड़ा मामला बेहद गंभीर है। प्रथम दृश्टया दस्तावेजी साक्ष्यों की पड़ताल करने से ही यह साफ हो जाता है कि दाल में कुछ काला है। दरअसल एजेएल नेषनल हेराल्ड अखबार की मालिकाना कंपनी है। कांग्रेस ने एजेएल को 90 करोड़ का कर्ज दिया। इसके बाद 5 लाख रुपए की अंष पूंजी से यंग इंडियन कंपनी बनाई गई। जिसमें सोनिया व राहुल की 38-38 फीसदी भागीदारी तय की गई। षेश बची 24 प्रतिषत की हिस्सेदारी कांग्रेस नेता और पार्टी के कोशाध्यक्ष मोतीलाल बोरा और आॅस्कर फर्नाडीज को दी गई। अब दोनों नेता दिवंगत हो चुके हैं। इसके बाद एजेएल के 10-10 रुपए के नौ करोड़ षेयर यंग इंडियन को दे दिए गए। इसके बदले यंग इंडियन को कांग्रेस का कर्ज भी चुकाना था। 9 करोड़ षेयर के साथ यंग इंडियन का एजेएल की 99 फीसदी हिस्सेदारी मिल गईं। इसके बाद उदारता दिखाते हुए कांगे्रस ने 90 करोड़ जैसी बड़ी धनराषि का ऋण भी माफ कर दिया। मसलन कागजों में एक कंपनी का कृत्रिम वजूद खड़ा करके एजेएल का स्वामित्व बड़ी आसानी से हस्तांतरित कर दिया गया। स्वामी ने अदालत में अपनी दलील पेष करते हुए इस प्रकरण में हवाला करोबार को अंजाम देने का संदेह भी जताया था। जाहिर है, मामला बेहद गंभीर है।

                अब 2000 करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति यंग इंडियन को गलत तरीके से स्थानांतरित की गई थी, आरोप है कि संपत्तियों का उपयोग करके फर्जी लेन-देन के जरिए लाखों-करोड़ों की रकम जुटाई गई। फर्जीदान, फर्जी अग्रिम किराया और फर्जी विज्ञापन के रूप में अवैध आय अर्जित की गई। जांच में पाए गए ऐसे ही दस्तावेजी साक्ष्यों के आधार पर अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया गया है। याद रहे ईडी ने 2021 से इस मामले की जांच कर रही है। ईडी ने जून 2022 में राहुल गांधी से पांच दिन में पचास घंटे और जुलाई 2022 में सोनिया गांधी से तीन दिन में करीब 12 घंटे पूछताछ की थी। इस मामले में मां-बेटे दिसंबर 2019 से जमानत पर हैं। वास्तव में अब जरूरत तो यह है कि एक जिम्मेदार और अनुभवी राजनीतिक दल होने के नाते सोनिया और राहुल समेत सभी आरोपियों को अपने निर्दोश होने के साक्ष्यों के साथ अदालत में अपना पक्ष रखना चाहिए। केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराने और संसद से सड़क तक हंगामे की बजाय कानूनी प्रक्रिया के अनुरूप व्यवहार जताने की आवष्यकता है, न कि सड़क पर प्रदर्षन की जरूरत ? अदालती कार्यवाही पर भी उंगली उठाना,सर्वथा अनुचित आचरण का प्रतीक है।

इस मामले में सोनिया गांधी को अपनी सास इंदिरा गांधी से भी प्रेरणा लेने की जरूरत है। उन्होंने अदालत की कार्यवाही का सामना करने में कभी हिचक नहीं दिखाई। रायबरेली चुनाव में धांधली के आरोप की सुनवाई के दौरान श्रीमती गांधी 18 मार्च 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में हाजिर हुई थीं,वह भी प्रधानमंत्री रहते हुए। इस नाते वे देष की पहली प्रधानमंत्री थीं, जो अदालत के समन के सम्मान में अदालत में हाजिर हुई थीं। हालांकि मनमाफिक फैसला नहीं होने पर,इंदिरा गांधी जून 1975 में आपातकाल घोशित करने से भी नहीं चूकी थीं। इसके बाद जब 1977 से 1979 के बीच जनता पार्टी केंद्र में सत्तारूढ़ थी, तब भी उन्हें कई मर्तबा अदालत  के कठघेरे में खड़ा होना पड़ा था। इस लिहाज से सोनिया को अपनी सास से अदालत का सम्मान करने का सबक लेने की जरूरत है,न कि अवहेलना करने की ? संभव है जिरह और न्यायिक प्रक्रिया की कसौटी पर स्वामी के दस्तावेजी साक्ष्य और ईडी के आरोप बेदम साबित हो जाएं और अदालत मामला ही खरिज  कर दे ? यह एक उम्मीद है,लेकिन यदि स्वामी जैसी कि दलील दे रहे हैं कि प्रस्तुत साक्ष्य कूटरचित और कथित रूप से व्यक्तियों को लाभ पहुंचाने वाले हैं और अदालत उन्हें सही पाती है तो कानून में ऐसे आरोप में जिस सजा का प्रावधान है,  अतएव आरोपियों का बच निकलना मुश्किल होगा ?



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